दिल्ली ने वंशवाद को नकार दिया है। भाजपा व कांग्रेस ने वंशवाद को बढ़ावा देते हुए बड़ी संख्या में प्रत्याशियों को उतारा था। विधानसभा चुनाव में 24 से अधिक प्रत्याशी ऐसे थे जोकि नेताजी के रिश्तेदार थे, वे अपना किला बचाने में विफल साबित हुए।
दोनों राजनीतिक पार्टियों ने जमकर भाई-भतीजावाद का कार्ड खेला था, जिसमें एक भी जीत का परचम लहराने में सफल नहीं हुआ। भाजपा ने जहां सांसद प्रवेश साहिब सिंह वर्मा के चाचा आजाद सिंह को मुंडका से प्रत्याशी बनाया था तो वहीं नांगलोई जाट से पूर्व विधायक की पत्नी सुमन लता शौकीन मैदान में थीं। इसी तरह तिलक नगर से ताल ठोक रहे राजीव बब्बर पूर्व विधायक ओपी बब्बर के बेटे हैं।
तुगलकाबाद से विक्रम बिधूड़ी दक्षिणी दिल्ली के सांसद रमेश बिधूड़ी के भतीजे चुनावी मैदान में थे। इसके अलावा भाजपा ने पूर्व मेयर अन्नपूर्ण मिश्रा के बेटे कपिल मिश्रा, बल्लीमारान से लता सोढी, पटेल नगर के प्रत्याशी प्रवेश रत्न को भी टिकट दिया था। ये सभी अपना किला बचाने में सफल नहीं हो सके।
कांग्रेस की बात करें तो प्रदेशाध्यक्ष सुभाष चोपड़ा की कालकाजी विधानसभा क्षेत्र से बेटी शिवानी चोपड़ा, चुनाव कैंपेन समिति के अध्यक्ष कीर्ति आजाद की पत्नी पूनम आजाद चुनावी मैदान में थीं। इसी तरह पूर्व मंत्री योगानंद शास्त्री की बेटी प्रियंका, पूर्व विधायक चौधरी प्रेम सिंह के बेटे यदुराज चौधरी, पूर्व विधायक विजेंद्र सिंह के बेटे मनदीप सिंह, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रामबाबू शर्मा के बेटे विपिन शर्मा, पूर्व विधायक हसन अहमद के बेटे मिर्जा जावेद अली, मॉडल टाउन के पूर्व विधायक कुंवर करण सिंह की बेटी आकांक्षा ओला, बाबरपुर से अनवीक्षा त्रिपाठी भी चुनाव हार गईं। कांग्रेस पार्टी के कई प्रत्याशियों की तो जमानत भी जब्त हो गई है।