निर्भया मामले के समय ममता शर्मा राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष थीं। राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष होने के नाते उस दौरान उन पर भी बहुत दबाव था। जनता सड़कों पर थी और उनके अंदर भी इस मामले को लेकर भयंकर गुस्सा था। वे भी चाहती थीं कि इस मामले में तुरंत न्याय मिले और अपराधियों को तत्काल फांसी हो, लेकिन ऐसा हो न सका।
आज जब निर्भया के दोषियों को फांसी हो चुकी है, वे कैसा महसूस कर रही हैं, और वे अब क्या चाहती हैं, इन्हीं सवालों को लेकर हमारे विशेष संवाददाता अमित शर्मा ने उनसे बातचीत की। प्रस्तुत है वार्ता के प्रमुख अंश-
आज जब निर्भया के दोषियों को फांसी हो चुकी है, वे कैसा महसूस कर रही हैं, और वे अब क्या चाहती हैं, इन्हीं सवालों को लेकर हमारे विशेष संवाददाता अमित शर्मा ने उनसे बातचीत की। प्रस्तुत है वार्ता के प्रमुख अंश-
प्रश्न- ममता जी, आज निर्भया के दोषियों को फांसी दी जा चुकी है। इस पर आपकी पहली टिप्पणी क्या है?
यह खुशी देने वाली खबर है। आज निर्भया को न्याय मिल गया है। मैं निर्भया की मां आशा देवी, उनकी वकील और उन सभी संगठनों को बधाई देती हूं, जो इतने लंबे समय तक इस मुद्दे के लिए लगातार संघर्ष करते रहे। आज सिर्फ निर्भया को ही न्याय नहीं मिला है, यह हर बेटी को इस बात का आश्वासन देने वाला फैसला भी है कि अगर उनके साथ कोई कुछ गलत करता है तो वह बच नहीं सकेगा। अगर यही न्याय घटना के बाद छ: महीने के अंदर हुआ होता तो कुछ और बात होती।
प्रश्न- निर्भया के समय आप राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष थीं। इस घटना के बाद आप पर कितना दबाव था?
जब आप एक जिम्मेदार पद पर होते हैं तो आप से लोगों की उम्मीदें बढ़ जाती हैं। लोग चाहते हैं कि आप कुछ ऐसा करें कि इस तरह के मामलों में वह एक नजीर बन जाये। आप खुद भी कुछ ऐसा ही करना चाहते हैं। लेकिन आपकी सीमाएं कई बार आपको बहुत कुछ नहीं करने देतीं और आप छटपटाकर रह जाते हैं।
एक महिला होने के नाते मैं निर्भया का दर्द महसूस तो कर पाई, लेकिन जितना चाहती थी वह हो नहीं पाया।
एक महिला होने के नाते मैं निर्भया का दर्द महसूस तो कर पाई, लेकिन जितना चाहती थी वह हो नहीं पाया।
प्रश्न- मैं आपसे स्पष्ट पूछना चाहता हूं कि आप क्या करना चाहती थीं जो नहीं हो सका?
मैं चाहती थी कि इस तरह के किसी भी मामले को फास्ट ट्रैक कोर्ट में चलाया जाए। दो-चार महीने या छह महीने में केस की सुनवाई पूरी हो और अपराधियों को सजा मिले। इस मामले के बाद गठित जस्टिस जेएस वर्मा कमेटी को हमने ये सुझाव भी दिए थे, जो उन्होंने काफी सकारात्मक भाव से लिया भी था।
लेकिन दुर्भाग्य है कि आज भी वह लागू नहीं हो सका है। उस समय के दिल्ली के कमिश्नर नीरज कुमार से भी लगातार बातचीत करके पुलिस की कार्यप्रणाली में बहुत कुछ सुधार की कोशिश की थी। तत्काल हालात में कुछ सुधार हुआ लेकिन उसे एक लगातार प्रक्रिया में बदलने की जरूरत थी। आज हो रही घटनाएं देखकर लगता है कि वह नहीं हो सका।
मैंने वर्तमान लोकसभा स्पीकर ओम बिड़ला जी से भी मिलकर यह सुझाव रखा है कि संसद के हर सत्र का एक दिन महिला सुरक्षा के नाम पर रखा जाए, जिस दिन हर सांसद अपने क्षेत्र की महिलाओं पर हो रहे अत्याचारों, हिंसाओं पर अपना विचार रखें।
मैंने कई सांसदों को भी यह प्रस्ताव किया है। गृहमंत्री अमित शाह जी से मिलकर दुष्कर्म पीड़ितों के लिए पुनर्वास योजना बनाने की मांग की है। अगर सरकार ऐसा कुछ करती है तो यह बेहद सकारात्मक कार्य होगा।
लेकिन दुर्भाग्य है कि आज भी वह लागू नहीं हो सका है। उस समय के दिल्ली के कमिश्नर नीरज कुमार से भी लगातार बातचीत करके पुलिस की कार्यप्रणाली में बहुत कुछ सुधार की कोशिश की थी। तत्काल हालात में कुछ सुधार हुआ लेकिन उसे एक लगातार प्रक्रिया में बदलने की जरूरत थी। आज हो रही घटनाएं देखकर लगता है कि वह नहीं हो सका।
मैंने वर्तमान लोकसभा स्पीकर ओम बिड़ला जी से भी मिलकर यह सुझाव रखा है कि संसद के हर सत्र का एक दिन महिला सुरक्षा के नाम पर रखा जाए, जिस दिन हर सांसद अपने क्षेत्र की महिलाओं पर हो रहे अत्याचारों, हिंसाओं पर अपना विचार रखें।
मैंने कई सांसदों को भी यह प्रस्ताव किया है। गृहमंत्री अमित शाह जी से मिलकर दुष्कर्म पीड़ितों के लिए पुनर्वास योजना बनाने की मांग की है। अगर सरकार ऐसा कुछ करती है तो यह बेहद सकारात्मक कार्य होगा।
प्रश्न- इन सात सालों की लड़ाई में कई बार लगा कि दोषियों ने कानून की कई खामियों को हमारे सामने लाकर रख दिया। क्या कहेंगी?
देखिए, आप कोई भी कानून बना लें, कोई कानून कभी पूर्ण नहीं होता। उसे लागू करने वालों की इच्छा और सोच ही उसे सही बनाती है। दोषियों के वकीलों ने अपने कानूनी अधिकारों का ही उपयोग किया, लेकिन ये करते हुए भी उन्होंने समाज के लिए बेहद गलत उदाहरण पेश किया।
हम सबके घर में मां-बेटी हैं। ऐसे किसी भी मामले में बहस-सुनवाई करते समय हमें यह ध्यान में रखना चाहिए कि हम अपने बच्चों के लिए कैसा हिन्दुस्तान बनाना चाहते हैं। यह जिम्मेदारी हम सबकी है।
हम सबके घर में मां-बेटी हैं। ऐसे किसी भी मामले में बहस-सुनवाई करते समय हमें यह ध्यान में रखना चाहिए कि हम अपने बच्चों के लिए कैसा हिन्दुस्तान बनाना चाहते हैं। यह जिम्मेदारी हम सबकी है।
प्रश्न- आप देश की महिलाओं को क्या संदेश देना चाहेंगी?
मैं सभी महिलाओं से अपील करूंगी कि वो अपनी बेटियों को शिक्षा से मजबूत बनाएं। महिलाओं के लिए समाज हमेशा चुनौतीपूर्ण रहा है। ऐसे में अगर हमारी बेटियां मजबूत रहेंगी तो कोई उन पर गलत दबाव नहीं डाल सकेगा। अभी हमें कानून को महिलाओं के हक में लाने के लिए लंबी लड़ाई लड़नी है। महिलाओं के मजबूत हुए बिना यह लड़ाई अधूरी रह जाएगी।